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Saturday, August 1, 2015

अल्लामा इक़बाल की शायरी और जीवन संदेश Art of living

अल्लामा इक़बाल की शायरी को मैं इसलिए पसंद करता हूँ कि उसमें निराशा के लिए कोई जगह नहीं है. 
अल्लामा के बाज़ शेर तो सोने से लिखे जाने के लायक हैं . ऐसा ही एक शेर यह भी है . 
अल्लामा इकबाल फ़रमाते हैं कि 


बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब

ये हवाएं तुझे ऊँचा उठाने के लिए हैं


...................................................................
शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़, एक परिंदा

आदमी को विपरीत हालात में भी अपनी सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए ।
अगर आदमी ऐसा कर पाए तो वह देखेगा कि मुश्किल बीत जाने के बाद उसमें 'कुछ गुण और कुछ ख़ूबियाँ' ऐसी उभर आई हैं जो पहले दबी हुई थीं । यही ख़ूबियाँ आदमी को समाज में ऊँचा उठाती हैं और सम्मान दिलाती हैं ।
महापुरूषों का आदर हम उनके उन गुणों के कारण ही करते हैं जो कि मुश्किल हालात में उनके अंदर हम देखते हैं और प्रेरणा पाते हैं।
इस बात को ढंग से जान लेने के बाद निराशा , पलायन और आत्महत्या जैसे भाव और कर्म के लिए कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं बचती ।
हमारे देश और हमारे समाज के लिए आज ऐसी सोच की शदीद ज़रूरत है ।

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